मन
मन
जाने कैसे
करवट
बदल रहा है,
मन है गोया
मौसम है
गुम-सुम रहकर
सब-कुछ
बोल रहा है,
जाने मन के
कैसे तेवर हैं।।
जाने कैसे
वक्त की
अंगुली
पकड़े वह
चल निकला
जाने कैसे
वह खुद
खूब लड़ा
बलाओं से।।
जाने कैसे
बट वृक्ष की
हरितिमा
ओढ़ी
उसने
फिर जाने
कितनों की
छांव बना
अंगारों में।।
स्वांस और
आस में
जाने कितना
प्यारा रिश्ता है
इक के रहते
दूजा यूं निराश
हुआ कैसे।।
फिर बरसेंगे
मेघ
घटा फिर छाएगी
सूखी झील में
छम-छम पानी
बरसेगा
प्यास बुझेगी
आस जो
शब्द उकेरेगी
व्याकुलता तो हो
पर मन यूं उदास
हुआ कैसे!!!!
स्वांस थी
आस थी
इनमें
जाने कितना
प्यारा रिश्ता था
इक के रहते
दूजा यूं निराश
हुआ कैसे।।