तिरंगा भी रोता है
तिरंगा भी रोता है
जवान शहीद बेटे की
आँगन में थी लाश पड़ी
माँ थी काफी बूढ़ी
आँखों से लाचार
और हाथों में थी छड़ी उसके
बायें हाथ में थामी थी लाठी
दायें हाथ से लगाये बेटे की छाती
आँखो में सुख गया था पानी
गला था रुँधा रुँधा-सा
मन से थी व्याकुल
लेकिन फिर भी वो शान्त थी
झुके थे सर सबके
पीछे खड़ी थी जनता
नारों की गूँज
आकाश में व्याप्त थी
इतने में आये जिलाधिकारी
सशस्त्र पुलिस साथ थी
हाथों में था उनके तिरंगा
ससम्मान उठाने की चाह थी
दुखी थे सभी ह्रदय से
पर इस सम्मान से खुश हुए
नेता पुलिस और पदाधिकारी
झुके शव को उठाने तिरंगा में
बुढ़िया के हाथों से
ज्योंही स्पर्श हुआ तिरंगा
किनारा एक पकड़ लिया उसने
पहले माथे पे लगाया
और फिर इशारे से
मना कर दिया
लपेटने शव को तिरंगा में
हैरान सभी
परेशान सभी
हुई क्या बात अभी-अभी
क्यों रोका उस बुढ़िया ने?
सूझा नहीं शायद उसको
लेकिन फिर माथे कैसे लगाया?
हिम्मत कर बोले
बुजुर्ग गाँव के एक
तेरे मरे बेटे को सम्मान देने
आज लोग बड़े-बड़े आये हैं
लपेटने शव उसका
तिरंगा साथ लाये हैं
अरे बुढ़िया
मति क्या तेरी
मारी गयी है?
जो रोकती है इनको
अरे, ये तो
पूरे गाँव का
मान बढ़ाने आये हैं
सुनकर ये बातें
कहती है वो बूढ़ी माँ
दूध आज मेरा कृतार्थ हुआ
रक्त इसके पिता का निहाल हुआ
करती नहीँ मना मैं
तिरंगे में इसे लपेटे जाने से
पर करो वादा एक मुझसे
लपेटा जाय तिरंगे में केवल वही
जिसका लहू देश के काम आया हो
भ्रष्टाचारी व्याभिचारी बेईमान
किसी नेता के शव को
स्पर्श नहीँ कराया जायेगा
ना कभी किसी
नेता की मौत पर
ये झुकाया ही जायगा
या तो तिरंगा
अपने शहीद से लिपटेगा
या शान से फहरायेगा
कर सकते हो ये वादा
यदि तुम मुझसे
तो लपेटना मेरे बेटे को इससे
वरना बँद कर दो परम्परा ये
क्योंकी अकेले में तिरंगा भी रोता है
जब किसी अपराधी की लाश पे
ये पड़ा होता है