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Mahak Garg

Abstract

3.1  

Mahak Garg

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यदि त्योहार न होते

यदि त्योहार न होते

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न बच्चो की खुशी होती

न बड़ो की ठिठोली होती

न ही लोग ढोल बजाते

यदि त्योहार न होते


न मिठाई की मनाही होती

न धर्मो की मिलाई होती

न ईश्वर के पूजन होते

यदि त्योहार न होते


न रंगो की बौछार होती

न पानी की पिचकारी होती

न पतंगो के पेंच होते

यदि त्योहार न होते


न घरों की सजावट होती

न बाज़ारो मे झिलमिल होती

न चारो ओर यूं दीपक जलते

यदि त्योहार न होते


न चाँद चाँद इंतजार होता

न मेलों में झूले लगते

न नौ दिन के उपवास होते

यदि त्योहार न होते


न संता का इंतजार होता

न कलाई पर राखी सजती

न बच्चों की झांकी होती

यदि त्योहार न होते


न सावन की बरसात होती

न मंदिरों में भीड़ होती

न शंखनाद की गूँज होती

यदि त्योहार न होते


न शेरो-शायरी की धूम होती

न चारो ओर हरियाली होती

न हम सब एकजुट होते

यदि त्योहार न होते


न होली, दिवाली, मकरसंक्रांति

न अल्लाह की पुकार होती

न सब मिल-जुल खुशी मनाते

यदि त्योहार न होते।


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