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Nisha Nandini Bhartiya

Abstract

5.0  

Nisha Nandini Bhartiya

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मानव की यात्रा

मानव की यात्रा

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रहकर गुफाओं में 

आग जला पत्थरों से  

शिकार कर पशुओं का

करता मांस भक्षण। 


ढक लेता तन-बदन को 

वृक्षों की कड़ी छाल से 

सच्चा साथी प्रकृति का         

था ऐसा आदि मानव।


क्या पाया तुमने सभ्य होकर

प्राचीन संस्कृति खो कर

जंगलों को काट कर

पशु-पक्षियों को सता कर।


हवा-पानी खो कर

सांस अपनी रोक कर

वन-पर्वत काट कर

धरती को रुला कर।


रोबोट बन दौड़ रहे 

बीमारियों से घिर रहे 

घर द्वार छोड़ रहे 

शुद्धता खोज रहे।


प्रेम की प्यास लिए 

अपनत्व को तरस रहे 

नवयुग की बन मशीन

दिन रात पीस रहे। 


बहुत दौड़ भागकर 

चांद पर पहुंच गए 

अधूरी चाह लिए            

भटक रहे इधर-उधर। 


पंच तत्वों को जीतने की 

जद्दोजहद में 

स्थिरता खो कर             

विक्षिप्ता पा गए। 


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