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Kavi Vijay Kumar Vidrohi

Others

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Kavi Vijay Kumar Vidrohi

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कौन है ?

कौन है ?

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“कौन है ?”

प्रेत है,साया या दानव,ज़लज़ला है कौन है ।
आज नव पीढ़ी, अनल में झोंकता ये कौन है । 
• 

कौन है ? जिसने कि मज़हब के वचन गंदे किए । 
फूल,ख़ुशबू,बाग़ लूटे और चमन गंदे किए ।
कर दिया दूषित वतन को,मज़हबों की आड़ में । 
सिसकियाँ भी दब गयीं,उस“कौन” की चिंघाड़ में । 
• 

चोरियाँ, दुष्कर्म, हत्या लूट, छोटी बात है । 
कौन है? आडंबरों में, ये सभी को ज्ञात है । 
अब कहो ! कैसे कहें ? पुरज़ोर वन्दे मातरम 
घुट रहा है , हो रहा कमज़ोर वंदे मातरम 
• 

तेरा मज़हब, मेरा मज़हब कर रहे धिक्कार है ! 
सिर्फ मानव धर्म का जज़्बा, मुझे स्वीकार है । 
कौन सा मज़हब सिखाता है, गलों को काटना ? 
है कहाँ लिखा, जहाँ में हादसों को बाँटना ? 
• 

सोच कर देखो जो तुमपे हँस रहा है “कौन” है । 
श्वेत वस्त्रों में छिपा है, हँस रहा है, मौन है । 
“कौन” है जिसके इशारों से ये पीढ़ी जल रही । 

घोर तम के साथ सहमी बेबसी से पल रही । 
• 

इस कौन से मंदिर जले हैं और टूटी मस्ज़िदें ।
कौन पूरी कर रहा है, आड़ से अपनी ज़िदें ।
कौन है जिसने ज़हर , हैवानियत का भर दिया । 
कौन है जिसने वतन को , खोखला सा कर दिया ।
• 
दो दिशा अब तुम स्वयं को लक्ष्य निर्धारण करो । 
कौन की परतंत्रता त्यागो स्वयं से रण करो । 
इस जवानी की ये अग्नि क्षीण करके मौन हो । 
जाओ दर्पण को निहारो, पूछ लो तुम कौन हो 


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