क्यों
क्यों
क्यों सर्द उन हवाओं को छोड़ तेरी हथेलियों से मिलने आती है
क्यों हर फूल तेरे कदमों तले कुरबान होना चाहता है
क्यों हर जख्म तेरी आवाज़ सुनना चाहता है
क्यों जहाँ की हर तितली तेरा ताज बनने को तरसती है
क्यों हर बूंद तेरे चहरे को छूने के लिए ही बरसती है
क्यों हर शब्द तेरी आवाज़ का सहारा चाहता है
क्यों हर मुस्कराहट तेरे होंठों पे इंतज़ार करती है
क्यों हर सुर तेरी बातों मे छिपना चाहता है
क्यों खुद वक़्त तुझे देख के गुज़रना चाहता है
क्यों रौशनी तेरी खुलती पलकों का इंतजार करती है
क्यों बादल तेरी छाँव बनने को झगड़ते हैं
क्यों हर आहट तेरे कानों को छूना चाहती है
क्यों हवा का हर झोंका तेरे बालों से खेलने इतनी दूर से चलके आता है
क्यों हर सुबह तुमसे मिलने का ख़्वाब देखती है
क्यों हर ताल तेरे कदमों से थिरकना चाहती है
क्यों हर उम्र तुझमें ठहरना चाहती है
क्यों हर रूप तुझ-सा दिखना चाहता है
क्यों हर तोहफा तेरी नकल बनना चाहता है
क्यों हर रास्ते को तेरे गुज़रने का इंतज़ार रहता है
क्यों तुझे देख प्यार अपनी परिभाषा बदलना चाहता है|