तितली
तितली
तितली को
तितली कह बैठा
तितली नाराज़ हो गई
तितली घूरती रही मुझे
देर तक और फुर्र हो गई
अपने सतरंगे पंख फैलाए
मैंने ज़ोर लगाया
एकबारगी
तितली ई ई ई
और देखता रहा
उस अदृश्य रेखा को
जिसे बनाती और
जिस पर बढ़ती
वह चली जा रही थी
आसमान को रौंदती
कुछ चिढ़ती, कुछ चिढ़ाती
मैं देखता रहा अपलक
पराजित खड़ा
एक तितली की
दुर्दम्य उड़ान को
जब तक कि
ओझल नहीं हो गए
उसके चटख, नन्हे पंख
मेरे दृष्टि पटल से।