ये ज़िन्दगी है मेरी
ये ज़िन्दगी है मेरी
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ये ज़िन्दगी है मेरी, पर मैं नहीं हूँ
सारी दुनिया है सही, बस मैं नहीं हूँ।
न जाने कैसी कश्मकशों का दौर है,
आईने में क्यों दिखता कोई और है।
किसी के लिए मैं मुझ-सी ही नहीं हूँ,,
ये ज़िन्दगी है मेरी पर मैं नहीं हूँ।।
भीड़ का हिस्सा हो जाना मंज़ूर नहीं था,
जीने का तो मगर मुझको शऊर नहीं था।
धीरे-धीरे तरीका वो सीख रही हूँ,,
ये ज़िन्दगी तो है मेरी पर मैं नहीं हूँ।।
हार मान जाने को जी नहीं करता,
कोशिश कर-कर के ये मन नहीं भरता।
अक्सर राहों में ठोकर खा गिरी हूँ,,
ये ज़िन्दगी है मेरी पर मैं नहीं हूँ।।
मन मारने की आदत-सी हो गई है,
हर एक ख्वाहिश ज़हर पी के सो गई है।
मर-मर के आजकल मैं जीने लगी हूँ,
ये ज़िन्दगी है मेरी पर मैं नहीं हूँ।।
सारी दुनिया है सही, बस मैं नहीं हूँ
ये ज़िन्दगी है मेरी, पर मैं नहीं हूँ।