Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Arun Arnaw Khare

Others Comedy

4  

Arun Arnaw Khare

Others Comedy

बादल

बादल

1 min
13.7K


साँझ-सकारे उमड़े बादल।
गरज-गरज कर लौट गए फिर
लगते उखड़े-उखडे बादल।

सोचा था तुम आओगे तो
देह-देह का ज्वर उतरेगा।
बूँदों के घुँघरू बाँधे कोई
अंश तुम्हारा पाँव धरेगा।
कितना छलना सीख गए हो
लेकर दो-दो मुखड़े बादल।

बनी नदी जो रेख रेत की
पता नहीं कब चल पायेगी।
गोने की बाट जोहती जो
पता नहीं कब मुसकायेगी।
अग्नि-वर्षा सी कर जाते हो
होकर सौ-सौ टुकड़े बादल।

साँस-सॉंस तक क़र्ज़दार है
मौसम के साहूकारों की।
ख़ून-पसीने का मोल नहीं 
मनमर्ज़ी है सरकारों की।
आश्वासन जैसे कोरे हो
दिखते चिकने-चुपड़े बादल।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Arun Arnaw Khare