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Shyama Sharma Nag

Abstract

4.9  

Shyama Sharma Nag

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एक और गांधी

एक और गांधी

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क्रांति की लहर चलती रहे

क्रांति से दुनिया बदलती रहे

मैं रहूँ न रहूँ मशाल जलती रहे।


न चाह है न तृषा है

न मन में कोई ग़ुबार है

मुझे कुछ न चाहिए


मेरे पास लोगों का प्यार है

अब गूँगे और बहरे लोगों का नहीं है देश

बयार आज़ादी की चलती रहे

मैं रहूँ न रहूँ मशाल जलती रहे।


अपने लिए जंग लड़ते हैं सभी

ग़ैरों के लिए कुछ करो तो कभी

ख़ौफ़नाक सायों से डरना मत कभी


अटल इरादों से लड़ना है अभी

दिल में ख़्वाहिशें मचलती रहें

मैं रहूँ न रहूँ मशाल जलती रहे।


सत्य और अहिंसा का

रास्ता बताया था किसी ने

अग्निपथ का बिगुल

बजाया था किसी ने


तख़्तोताज़ को पलट कर

हिलाया था किसी ने

ऐसी महा -आत्माएँ उतरती रहें

मैं रहूँ न रहूँ मशाल जलती रहे।


विरासत देश की संभालना है तुम्हें

बेग़ैरत समझौतों से नहीं बहलना है तुम्हें

भ्रष्टाचार की महामारी को भगाना है तुम्हें

बस तमन्नाओं की आँधी चलती रहे

मैं रहूँ न रहूँ मशाल जलती रहे।


निराशा के बादल भी फट जाएँगे कभी

आशाओं के इंद्रधनुष भी निकल आएँगे कभी

ज़िंदगी के पल भी हसीन हो जाएँगे कभी

बस उम्मीदों की लौ दहकती रहे

मैं रहूँ न रहूँ मशाल जलती रहे।


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