बच्चों को खेलते देखकर
बच्चों को खेलते देखकर
कल गली में बच्चों,
को खेलते देखकर,
अपना बचपन याद,
आ गया एक बार फिर।
कभी हम भी,
खेलते थे साथ मिलकर,
वो याराना याद,
आ गया आज फिर।
स्कूल जाते थे एक,
दूसरे का हाथ पकड़कर,
खेलते और मस्ती,
करते रहते थे दिनभर।
न किसी बात की,
चिंता थी न कोई फिकर,
आज फिर पलकें नम,
हो गयी उन दिनों को याद कर।
तब माँ खाना,
खिलाती थी भाग-भागकर,
और पिता जी चलना,
सिखाते थे ऊँगली पकड़कर।
स्कूल से घर तक,
धमाचौकड़ी मचाते थे दिनभर,
आज मन उदास,
हो गया वो सब यादकर।
घर में सबका प्यार,
मिलता था जी भरकर,
रातों को माँ,
सुलाती थी लोरिया गाकर।
शाम को घूमा करते थे,
पापा के कंधे चढ़कर,
आज फिर दिल रो पड़ा,
उन दिनों को यादकर।
बिन बात के रो देते थे,
और खुश होते थे हँसकर,
न छुट्टी करने की थी,
फिकर न काम का था डर।
कल गली में बच्चों,
को खेलते देखकर,
अपना बचपन याद,
आ गया एक बार फिर।