ये कैसा विकास है
ये कैसा विकास है
सोचता हूँ मै ये अक्सर,
ये कैसा विकास है,
जहां चारो तरफ सब उदास हैं।
लालच बढ़ता जा रहा है,
ना पीने का पानी साफ़ है,
ना हवा, साँस लेने लायक,
लोग यहां दरबों में रहने को मजबूर है,
आखिर ये कैसा विकास है ?
काटकर हरे-भरे पूरे जंगल,
बड़ी- बड़ी अट्टालिकाओं के जंगल बनाये हैं,
पाटकर कुएं और तालाब,
उनपर हमने बड़े पक्के घर बनायें है।
क्या ये कंक्रीट के जंगल और पक्के घर,
हमको साफ़ हवा - पानी दे पाएंगे,
अगर नहीं,
तो हमको फिर से ये सोचना है क़ि,
आखिर ये कैसा विकास है ?
समाज का ताना-बाना बिखर गया है,
सालों से बच्चा नानी के घर नहीं गया है,
क्योंकि उसके बस्ते का बोझ बहुत बढ़ गया है।
वो तैयार हो रहा है,
एक मशीन की तरह,
जो काम कर सकें भविष्य में,
धुएं उगलने वाली कंपनियों में,
बड़े-बड़े उद्योगपतियों के लिए।
जैसे बांध बना कर नदियों का,
रास्ता सीमित कर दिया,
वैसे ही सीमित कर दिया गया है,
उसके सोचने का दायरा,
उसे विकास और अच्छी ज़िंदगी समझाकर |
जहां उसके पास पक्का घर तो है,
पर वो आज़ाद नहीं है,
बंद कमरे में।
पिजंड़े में बंद पक्षी की तरह,
वो बिलकुल खुश नहीं है,
अगर ये विकास है तो सोचना होगा,
आखिर ये कैसा विकास है ?
और अगर ये विकास अच्छा है,
तो क्यों उठाते है लोग बंदूकें इसके खिलाफ,
क्यों गवातें है अपनी अमूल्य जानें,
लड़ते हैं अपने लोगों से,
अपनी ही सरकारों से।
ये हमको सोचने पर मजबूर करता है,
क़ि आखिर ये कैसा विकास है ?
जहां हम चाहतें है,
एक से लोग, एक सी भाषाएँ,
रहने के एक से तरीके।
जहां लोग खुले आसमान के पंक्षी से,
आज़ाद नहीं है,
फिर हमको ये सोचना होगा,
आखिर कैसा है ये विकास,
और हमको चाहिए कैसा विकास ?