बुड्ढा
बुड्ढा
बड़ी मेहनत से बना है ये बंजर मकान,
बहुत गहरा है बूढ़ी आँखों का नज़रिया,
तू देख इन सफ़ेद बालों को होते जवान।।
तू जवान है तो गुरुर में सोचता है! ढह जायेगा ये?
जो बना है, तेरे जैसे को काँधे पर उठाकर शमशान
तू क्या जाने, इनकी मस्तिष्क की ताकत को जवान,
बड़ी मेहनत से बना है, दिमाग का अंतरिक्ष महान
बड़ी मेहनत से बना है ये बंजर मकान।।
तू ऐसा सोचता है, तेरी जरुरत खत्म हो गई है,
तुझे बनाने में ही बना है, पूरा ये खंडहर मकान
अब कंपकपाते हाथ देख, और अपनी बात देख,
तुझको मनाने में ही लगा है इसका जीवन महान
बड़ी मेहनत से बना है ये बंजर मकान।।
आज तू बुड्ढा समझकर, खो रहा अपना अस्तित्व भी,
देख ज़रा तेरी परवरिश में, किया है इसने जीवन दान
और तुझको विलायत भेजकर, खूब रोया है ये इंसान,
आज भी खड़ा है उम्मीद से, तू ही ले जायेगा शमशान
बड़ी मेहनत से बना है ये बंजर मकान।।