अपना खाना आ रहा
अपना खाना आ रहा
भीड़ सी है हर जगह,
कपड़ों का जाल बिछा,
आवाज़ों की गूंज ऐसी।
ना स्वर अपना
ना स्वर उनका
मुझे है सुन रहा।
कोई खिलौने बेच रहा,
कोई चाहत खरीद रहा,
बाज़ार लगा है साहिब,
यहाँ मोल भाव चल रहा।
साँसों में खाने की महक,
पेट में चूहों की चहक,
हरे नाखून, पीले चेहरे,
हर तरफ है तांता लग रहा।
पैरों में जूते,
भाव हैं झूठे,
सच तो बस है एक झूठ।
लफ़्ज़ों में मौनआखिर
उठा ही लिया लिखते लिखते
मैंने वो फोन।
उधर से आई ध्वनि ने,
पेट में शोर गुल का,
माहौल पैदा कर दिया।
वो आवाज़ थी-
तैयार हो जाओ सोनिया,
अपना खाना आ रहा।।