बेपनाह इश्क़
बेपनाह इश्क़
ना भूला हूँ वो पल
जो मैंने तेरे साथ बिताये थे
ना भूला हूँ वो कसमें
जो हमने साथ मिल के खाई थीं
ना भूला हूँ वो बातें
जो हम कभी किया करते थे
ना भूला हूँ वो लम्हा
जब हम प्यार किया करते थे...
ना सोचा था कि
ऐसा भी मोड़ आएगा
जिसे चाहा था हमसफ़र
अब वो गैर बन जायेगा
अब चाह कर भी मैं
उससे नहीं मिल पाउँगा
उसकी नज़रों से
कहीं दूर चला जाऊंगा...
कभी ना कभी तो
वो समझ पायेगी मेरी इस कुर्बानी को
जब याद करेगी वो भी
अपनी बीती ज़िंदगानी को
क्या पता ज़िंदगी के किसी मोड़ पे
वो मुझे फिर मिल जाए
मेरी सूनी - सी ज़िंदगी में
फिर से खुशियों की कली खिल जाए
यही सोच के अपनी ज़िंदगी
जिए जा रहा हूँ मैं
हर वक़्त, हर लम्हा
उससे इश्क़ किये जा रहा हूँ मैं...!