प्यारा सा वो शख़्स
प्यारा सा वो शख़्स
इस गैजेट्स के ज़माने में,
कुछ पन्नों में यादें समेट लूँ,
ये पन्ने उसके नाम कर के,
उसके प्यार में खुद को लपेट लूँ।
उसके साथ बिताया हर पल रेत सा लगता है,
जितनी कोशिश करूं की थम जाये, उतना ही वो फिसलता है।
इस चेहरे पे मुस्कुराहट लाने के लिए कितना कुछ वो करता है,
कहीं हो ना जाए वो दूर, ये सोच के दिल डरता है।
जब भी हो कोई ग़म, आँखों से वो पढ़ता है,
मन की हर बात को, बिन कहे वो समझता है।
सुबह सुबह उसका चेहरा देख के, जो सुकून दिल को मिलता है,
जैसे किसी रेगिस्तान में प्यासे को दरिया एक मिलता है।
अपनों को खुशियाँ दे सके, इसीलिए काम इतना वो करता है,
शायद इसीलिए इम्तेहान में, थोड़ा कम वो पढ़ता है।
इन होंठों पे लाने को हंसी, बातें कुछ भी वो करता है,
उसकी बातों पे प्यार लुटाने को दिल मेरा करता है।
अनजाना सा था वो, पर दिल में बस गया चन्द लफ़्ज़ों में ही,
आने से उसके ज़िन्दगी में, फिर ना रही कोई कमी।
सूरज सा था वो, जिसको छूना नामुमकिन सा लगता था,
पतंगे सी मैं, उसे छूने को मन करता था।
जब चाहत का ज़िक्र किया उसने, लगा जैसे ख़्वाब हो एक हसीन,
उसके आने से बेरंग ज़िन्दगी भी बन गयी रंगीन।
कमियाँ ना देखीं कभी उसने, अगर कुछ देखा तो बस प्यार,
इस बनावटी दुनिया में ना जाने कैसे मिला वो यार।