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Saurabh Sood

Tragedy

3  

Saurabh Sood

Tragedy

इश्क़ की निशानी देखकर

इश्क़ की निशानी देखकर

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हैराँ हुआ मैं ज़ूद-ए-पशेमानी देखकर

दर्द-ए-दिल, आँखों में भरा पानी देखकर

दाम-ए-ज़ुन्नार-ओ-ज़िन्दगी को तोड़ दें

जी चाहता है दरया तेरी रवानी देखकर

फिर हँस दिए हम गीराई-ए-दाम पे तेरी

ऐ क़िस्मत तेरी ये कारस्तानी देखकर

नंग-ए-वजूद को छुपाने की करते हैं दवा

हम रौज़न-ए-पैराहन की फ़रावानी देखकर

अपनी लहद को फिर देखते हैं पुर-हसरत

जलता है जिग़र मंज़र-ए-आँजहानी देखकर

इंतज़ार-ए-क़ज़ा को ही गोया कहते हैं हयात

अहसास हुआ आज अपनी ज़िंदगानी देखकर

ग़मज़ा-ए-लफ्ज़ तेरे लबों पे नहीं ऐ दोस्त

शिशदर हूँ मैं तेरी आशुफ़्ता-ज़बानी देखकर

वो क़ातिल बख़्श दे मुझे यक़-शब ज़िन्दग़ी

वजह ढूंढता हूँ उसकी ये मेहबानी देखकर

ताउम्र न फिर तेरे कूचे में रखा क़दम बजौफ़

इक रोज़ वो महफ़िल की सरगरानी देखकर

इस क़दर शौक है मुझको ज़ख्म खाने का

बरु-ए-क़ार हूँ, ख़ंजर-हाए-निहानी देखकर

याद आता है इक क़िस्सा-ए-वफ़ा अब भी

ताक़-ए-निसियाँ पे सजी, इश्क़ की निशानी देखकर


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