ढलती शाम
ढलती शाम
जब शाम ढलती है,
तेरी याद आती है
घर के आंगन में,
तेरी पायल की आवाज़ आती है|
घर के चौखट पे बैठे,
राह निहारे रहता हूँ ||
न जाने तुम कब आओगी,
ये आस लगाये रहता हूँ ||
ओ मेरी प्यारी सजनिया !
जब तुम रात पकवान बनाती,
अपने बालों को यू सहलाती||
नैनो को यू तिरछा कर,
दिल पे मेरे तीर चलाती||
ये जो तेरे दो नैना है,
बड़े ही कातिलाना हैं ||
बस ये रात यूं ही सिमट जाये,
जब तू मुझसे यू ही लिपट जाये ||
ओ मेरी प्यारी सजनिया !