पुस्तक
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सहसा हथेली भीग गई
अजीब सा चिपचिपापन
मानो लहू चिपक गया हो
और
कान में सरसराहट गूँज गई
जैसे
कोई कराह रहा हो
सिसक सिसक कर ....
गौर से देखा तो
अलमारी में रखी बरसों
पुरानी पुस्तकें उपेक्षित सी
रिसते रिसते बह रही थी
और अक्षरों की रूह
कराहते कराहते फ़ना होने के
करीब थी जैसे .....
अपनों से बढ़कर अपनी किताबें
जिनसे जीवन सीखा
जीवन की भाग दौड़ में उनकी
इतनी उपेक्षा .....
लज्जित सा कर गई ....