देखो आई है शरद पूर्णिमा
देखो आई है शरद पूर्णिमा
देखो आई है शरद पूर्णिमा
आंगन में आई है दूध की अमृता
अश्विन माह की चंद्र चांदनी
बिखेरती आकांक्षाओं की सरिता।
नील गगन की चंद्र चांदनी
उन्हे देखकर सजी दूध की कढ़ाई है
शुभ्र धवल किरणे बिखेरती
मीठे मीठे दूध में अमृत बरसाती है।
सीप सीप दूध की बुंदे कलशमे
दिलमें अत्तरकी खुशबू भरती है
आनंद उल्हास की खिलखिलाहटसे
मन ह्रदयौमें वह चमचमाती है।
शरद पूर्णिमा उत्सव जमी पर
देखो कैसा निखार भर लाई हैं
जैसें चाँद का मनमोहक मुखड़ा
देखकर चांदनी लजा रही हैं।
जमी है महफिल देखो क्षितिज में
चांद और चांदनीकी छिटककर
अात्मीक अनुभूतीसे सुरभित
सु-मंगल गीत गा रही है जमीं पर।
अमृतरस वर्षा से जन मन निरोगी होते
नए पथ पर चलने खातिर शक्ति देती है
सौंदर्य में भी चार चांद लगाती है
यह चंद्रकिरणें दिव्य औषधि होती है।