आओ प्रेम करें.......
आओ प्रेम करें.......
नीली नदी में चाँद की परछाई से
उभर सकती है प्रेम कविता
सूरज के सुनहरी धागों से
बुनी जा सकती है प्रेम कविता
चाँदनी रात में नदी में पैर डाले
बैठी रह सकती है प्रेम कविता
समंदर किनारे बिखरी रेत पर
फिसल सकती है प्रेम कविता
फूलों पर मँडराते भँवरे की आवाज़ में
गुनगुना सकती है प्रेम कविता
लेकिन वो सिर्फ़ एक कविता होगी
जिसे प्रियतम को लिख कर
भेजा जा सकता है प्रेम संदेस
वास्तविक प्रेम नहीं होती ये प्रेम कविता
अधूरी ख्वाहिशों के पूरी होने की चाहत में
या तो दम तोड़ देती है आधे रास्ते में
या प्रियतम तक पहुँचने से पहले
अपना रास्ता खो देती है प्रेम कविता
आ इससे पहले कि प्रेम की नैसर्गिक कविता
किसी कव्वाल के हाथ में पड़ जाऐ
और महफ़िल का तमाशा बन जाऐ
इसे प्लेटोनिक प्रेम के दायरे से बाहर निकालकर
सच्ची का बदन दे दे
जहाँ प्रेम लफ़्ज़ों की लफ्फाज़ी में नहीं
स्पर्श की सच्चाई में उतरे
और सिखा जाऐ जीवन विज्ञान का पाठ
कि मादा की देह से निकलने वाले
रसायन की ख़ुशबू
और नर के शरीर में उससे उत्पन्न हारमोन
की हार्मनी से उपजती है प्रेम कविता ....
सारा खेल प्रेम के उस चरम बिन्दु को पाने का ही तो है
जिसके लिए रचे गऐ न जाने कितने सूत्र
लेकिन किसी सूत्र में कहाँ उतरती है कोई प्रेम कविता
प्रणय के प्रगाढ़तम क्षणों में,
जब कानों में पड़े प्रियतम का मंत्र
कि तुम ही हो जीवन, तुम्हीं हो प्रेम
तब घटित होती है एक सच्ची प्रेम कविता......