लोग जिंदा हैं
लोग जिंदा हैं
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शहर जिंदा है,
लोग जिंदा हैं,
पर मानवता दूर दूर तक खंगाले नज़र नहीं आती।
गाँव जिंदा हैं,
लोग जिंदा हैं,
पर जातीयता दंभ भरे हर तरफ है नज़र आती।
अर्थशास्त्री बैठ गये हैं जीडीपी के आंकड़े देने,
इनको ना संताप नज़र आता हे न भूख नज़र आती।