इश्क़ का इतवार
इश्क़ का इतवार
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तेरे इनकार का लहजा भी क्या कमाल है?
जवाब दे दिया तूने, और सवाल बरक़रार हैं
किसी ने पूछा इश्क़ का मौसम कैसा है ?
ओस आंसू समझ लो और पतझड़ प्यार है
तू गर तीर है तो तरकश मुकाम नहीं तेरा
आ और वार कर दिल छलनी होने को तैयार है
किताबी बातें मेरे समझ के परे ही है जानो
इश्क़ समझ न सको तुम तो पढ़ाई बेकार है
यहाँ कोई चुनावी मसला हो ही नहीं सकता
दिल है हमारा, ताउम्र आपकी ही सरकार हैं
तिरछी निगाहों से तुम देखना छोड़ते क्यूँ नहीं
मसला फ़िर वही, की तुम्हें भी हमसे प्यार है
मैं तुझे याद करूं तेरी ही सहूलियत की तरह
तुम रोज़ कहती हो की आज इश्क़ में इतवार है