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Raj Bairwa Musafir

Others

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Raj Bairwa Musafir

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मेरी मुझसे मुलाक़ात

मेरी मुझसे मुलाक़ात

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फिर वही कतरे नहीं बुन रहा,

आज सिर्फ अपने लिए हूँ लिख रहा,

दिल भर रहा हैं दर्द से बरसों,

आज उसे बस खाली हूँ कर रहा,

बहुत गुजार लिया वक़्त तुम्हारा,

तारों की रोशनी में गुमशुदा ,

चाँद की बात नहीं आज हूँ अपनी कर रहा,

फिर वही कतरे नहीं बुन रहा,

आज सिर्फ अपने लिए हूँ लिख रहा,

दिन गुजर गए, महीने औऱ साल भी,

उन बीते सालों के बाद की बात हूँ मैं कर रहा,

सिर्फ बातें ही तो नहीं जो आज तक लिखा 

वो हमारी यादें ही तो थी जो कल तक लिखा,

मगर आज अपने एहसासों की कहानी हूँ कह रहा,

फिर वही कतरे नहीं बुन रहा,

आज सिर्फ अपने लिए हूँ लिख रहा,

ख़ुद के करीब आकर बेहतरीन हैं लग रहा,

आज तो काली रात भी हैं सुहानी लग रहीं,

जानता तो था बरसों से इसे कहीं जो छुपी  थी,

इस शक़्ल को आईने में तलाश सुकून हूँ पा रहा,

पहले सा तो नहीं मग़र कुछ रूहानी हूँ लग रहा,

फिर वही कतरे नहीं बुन रहा,

आज सिर्फ अपने लिए हूँ लिख रहा...


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