ख़ामोशी: एक दिल की ज़ुबा
ख़ामोशी: एक दिल की ज़ुबा
कह जाती है आँखों की नमी,
होंठ खामोश ही रह जाते है;
कमी सिर्फ समझने वालों की होती है,
वरना ख़ामोशी भी ज़ुबा बन जाती है।
ज़िन्दगी बस एक अनकही कहानी है,
रो कर भी हँसना, एक ज़िंदगानी है।
यूँ तो बहुत होते हैं अपने कहने को,
पर अपनेपन के लिए दिल तरस जाता है;
क्या होता है गम अकेलेपन का,
वो तो बस अकेला जीता हुआ इंसान ही जान पाता है।
तो बस हम भी है मुसाफिर ज़िन्दगी के,
सह लेते है हर गम हँसते-हँसते
हाथों में अपनों का हाथ लिए चलते है,
राहों में मिले हर मुसाफिर से,
अब हम ज़रा हम बच के चलते हैं।
देखा है हमने भी सुबह का सूरज डूबते हुए,
शायद इसीलिये, अब हम अंधेरों को सलाम करते है।
क्योंकि हर रौशनी ही ज़िंदगानी है,
हर अँधेरे के पीछे, एक सुबह का एहसास होता है।