कुछ इस तरह अपने कलम की जादूगरी
कुछ इस तरह अपने कलम की जादूगरी
कुछ इस तरह अपने कलम की जादूगरी दिखाएँगे
किसी की ज़ुल्फ़ों में लहलहाते खेत हरी-भरी दिखाएँगे
छोड़ो उस आसमाँ के चाँद को,मगरूर बहुत है
रातों को अपनी गली में हम चाँद बड़ी-बड़ी दिखाएँगे
किस्सों में जो अब तक तुम सुनते आए सदियों से
मेरा मुँह चूमता हुआ तुम्हें वही पुरनम परी दिखाएँगे
हम यूँ कर देंगे कि भूले नहीं भूलोगे ये शमा
हुश्न के महल में काबिज़ आफताब संगमरमरी दिखाएँगे
जहाँ भी चले जाओ,इतना ही हुश्न बरपा है हर ज
जिसे जन्नत कहते हैं, वो हिन्दुस्तान हर घड़ी दिखाएँगे