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Husan Ara

Classics

5.0  

Husan Ara

Classics

बड़ो का साया

बड़ो का साया

1 min
373


तजुर्बा कमाया जो दुनिया का इतने सालों में,

नज़र आने लगता है इनके सफेद बालों में,

मेहनत मशक्कत की थी जो रातो उजालों में,

दिखने लगती है इनके झुर्रियों भरे गालों में

ऐसा साया जैसे होता बरगद पेड़ की छालों में

हार की डोर बने बैठे हैं मोती से घरवालों में।


जीवन यापन कर लिया इज़्ज़त के निवालों में,

कितनी बातें पी गए धैर्य प्रेम के प्यालों में,

सबकी चिंता ध्यान सभी का करते रोज़

ख्यालों में,

सबकी सेहत ,संज्ञान सभी का, पूछें रोज़ सवालों में,

ऐसा साया जैसे होता बरगद पेड़ की छालों में,

हार की डोर बने बैठे हैं मोती से घरवालों में।


साया इनका रहे यूंही बस आने वाले सालों में,

ये अनमोल प्रेम न होता गर तो होते हम कंगालो में,

ऐसा साया जैसे होता बरगद पेड़ की छालों में,

हार की डोर बने बैठे हैं मोती से घरवालों में।



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