“मुझे तुम याद आती हो”
“मुझे तुम याद आती हो”
हवा में घुली अजीब सी ठंडक
मेरे जिस्म ज़हन और रूह में
जब पैदा करती है सिहरन
मुझे तुम याद आती हो.......
आसमान जिसे तुम नीला गुब्बारा समझती
उसके फूट जाने पर रिसती हुई बूँदे
जब भिगा देती हैं तन और मन
मुझे तुम याद आती हो
सूरज स्याह रात पर चढ़ाकर
परत दूध और मलाई की
जब छिडकता है उजली किरन
मुझे तुम याद आती हो
सवेरे सड़क पर टहलते वक़्त
माँ के सामने स्कूल जाते बच्चों का
जब देखता हूँ चंचल बनावटीपन
मुझे तुम याद आती हो
किसी बस, ऑटो या ट्रेन में
बगल की सीट पर बैठी लड़की
जब घूरती है तो फौरन
मुझे तुम याद आती हो
अब जब तुम पास नहीं मेरे
मैं सब कुछ भूलना चाहता हूँ
तब इन सब के ही कारण
मुझे तुम याद आती हो