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Versha Gupta

Others

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Versha Gupta

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ख़्वाब एक निशाना

ख़्वाब एक निशाना

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मेरे ख़्वाब भी निशाने जैसे

कभी लगते कभी छूटते


ऱोज एक ख़्वाब टूट जाता हैं|   

मेरी जीने की चाह छूट जाती हैं।

बस टूटी हिम्मत को बटोरती हूँ ऱोज

एक नया ख़्वाब बुनती हूँ

जिंदगी के पथ पर चलती रहती हूँ


इसी आश में

कभी समय को मजबूर होना होगा

मेरा एक ख़्वाब तो पूरा करना होगा।


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