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Divik Ramesh

Others

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Divik Ramesh

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बड़ी बनूँ कुछ मैं भी

बड़ी बनूँ कुछ मैं भी

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तितली नहीं बैठ सकती क्या

एक जगह तू टिककर?

उड़ ना सकती क्या तू तितली

एक जगह से छिक कर?

मैं भी तो ऐसी ही हूँ ना

घूम घूम कर खाती।

माँ कहती है एक जगह मैं

अरे नहीं टिक पाती।

पर क्या तितली कभी गले में

खाना नहीं अटकता?

कभी इधर फिर कभी उधर जा

मन क्या नहीं भटकता?

मेरे तो मैं सच कहती हूँ

खाना गले अटकता।

चंचल हो जब पुस्तक पढ़ती

मन भी ख़ूब भटकता।

अब तो सोचूँ टीचर जी की

बात मान लूँ मैं भी।

टिक कर बैठूँ, टिक कर पढ़ लूँ

बड़ी बनूँ कुछ मैं भी।


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