नियत बदलते
नियत बदलते
क्या कहे हम इस मॉडर्न जमाने की
माँ-बाप की सेवा भारी लगे ज़माने को।
जिसने उंगली पकड़ कर
चलने की प्रेरणा दी चलना सिखाया।
घोड़ा बनकर पीठ पर तुम्हें घुमाया
जिस माँ ने तुम को गुरु बन कर
दुनिया से अवगत कराया
हर पल हर दुख शह कर जाने
कितने आँसू बहाये तुम्हारी खातिर।
जो उंगली पकड़ तुम्हें
शिक्षा के मंदिर ले गयी
वो ही माँ बाप तुम्हारी
कमाई के हकदार नहीं।
बीवी क्या मिली जनाब को
जोरु के ग़ुलाम हो गए
ऐसे बेटों को तो समाज में
रहने का भी हक़ नहीं।
माँ बाप के घर मे रहते हैं जो और
उनको वृद्ध आश्रम पकड़ कर छोड़ आते हैं
बेटों के नाम जीते जी ना
अपनी संपत्ति कभी करना।
वरना तुमको तुम्हारे ही
घर से ये बाहर करेंगे
माना कि हर बेटा बुरा नहीं होता
लेकिन नियत बदलते देर नहीं लगती।