तुम वो ही तो नहीं
तुम वो ही तो नहीं
लम्हें सदियों में पलट गए
तुम्हारी आहट पाकर
कहीं तुम वो ही तो नहीं।
तुम्हारे गर्म उच्छवास ने
जब कदम रखा मेरी
हिमकंदरा सी साँसों की गाह में..!
तब्दील हुआ एक ख्याल
उस सदियों में
कुछ काल पहले जहाँ
कभी एक जोगी,
मेरे मोह में तपस्वी सा
इश्क के यज्ञ की धूनी
जमाए बैठा था..!
चुम्बन की आहूतियों से
मेरी साँसों में एक
लोबानी धुँआँ भरता था,
मेरी रूह महकती
बहकती पीछा करती है
आज भी उस धुँएँ को
भरने अपनी साँसों में..!
सुनो ओ मायावी जोगी
मेरी हिमकंदराओं को छलका दो
तप्त ज्वालामुखी से,
आगे और सदियाँ जीनी है
मुझे उस धुँएँ को ढूँढते..!
तुम्हें पाना नहीं,
इस सफ़र में ही रहने दो
इस धुँएँ को नासिका में
भर लूँ तो साँसें चले।।