दोस्ती
दोस्ती
मुझे दोस्ती बस
कृष्ण और सुदामा
जैसी चाहिये
कृष्ण जो भी हो
दोस्त सुदामा चाहिये
मे भी सुदामा बनकर
रहना चाहता हूँ
सच बोलकर
सच के रास्ते पर
चलना चाहता हूँ
भले ही दरिद्र रहूँ
साथी कृष्ण जैसा
ही होना चाहिये
फटे हाल रह लूँगा
पंडित हूँ भीख
भी मे माँग लूँगा
नौकरी भी मिल जाये
उसको भी कर लूँगा
कवित्त सुदामा लिखते थे
राजा हो या रंक वो
सब पर सच लिखते थे
अच्छा लगे या बुरा
सच हमेशा कहते थे
दंड मिल जायेगा
उससे भी नही डरते थे
पत्नी का साथ सच्चा
उनको बस मिलता रहा
हर मुसीबत मे उनका
साथ हर दम मिलता रहा
हिम्मत भी कभी हारे नही
ये जीवन भर चलता रहा
कृष्ण थे भगवान थे
पर दोस्त भी वो
अच्छे और सच्चे थे
परीक्षा जब पूरी हुई
दरिद्रता भी मिट गई
झोपड़ी जो उनकी थी
वो भी महल बन गई
लेने गये थे थोड़ा कुछ
सब गरीबी हट गई
कृष्ण सुदामा की
दोस्ती ऐसे अमर हो गई ।
कोई मिला नहीं दोस्त ऐसा
जो हो बस कृष्ण जैसा
मतलबी सब यार निकले
कोई नही है उनके जैसा ।