आँखों को बातें करने दो
आँखों को बातें करने दो
मिलते तो है हर रोज पर,
कहां अकेले मुलाकात होती है।
होठ तो खामोश रहते हैं पर,
आँखों ही आँखों में बात होती हैं।
मेरी आँखें हैं जो देखते ही उसे,
शरमा कर झुक जाती हैं।
होठ ऐसे बड़े मचलते हैं पर,
उसकी बात हो तो रुक जाती हैं।
आँखों की गुस्ताखियां है जो,
उसे ढूंढने को मजबूर करती हैं।
जब मिल जाए नज़रें अकस्मात,
मिलने को उससे दूर करती हैं।
देखा है उसकी नज़रों में,
मेरे लिए खास एहसास नहीं है।
पर एक मेरी नज़रें हैं जो नासमझ हैं,
जहाँ वो दिखे रूक जाती वहीं हैं।
अब सोचा दिल की कशमकश है,
ये जो भी करे वह करने दो।
होठ से बातें नहीं होती तो क्या,
आँखों को ही बातें करने दो।