वैश्या
वैश्या
हमारी भी कोई मजबूरी है,
इसलिए हम यह काम करते हैं।
बड़े बड़े घराने के लोग,
हमें एक वैश्या कहते हैं।
रंगरलिया मनाने रातों में,
इस कोठे पर आते हैं।
रोज सुबह अंधियारे में,
मुंह छुपाए चले जाते हैं।
हवस की भूख मिटा कर,
वह पैसों की बारिश करते हैं।
कोई दूसरा मिल जाए इस बार,
ऐसी ही सिफारिश करते है।
मेरे ही पति ने मुझे धोखे से,
यहाँ बेचा और चला गया।
उस दिन से मेरा काम सिर्फ,
मनचलों के बीच में रह गया।
शादी के फेरे के बाद से ही,
पति पर खुद को लुटाया था।
दिल से अपनाया उनकों और,
मेरा संसार उनमें सजाया था।
अपना सा है वो मुझको जो,
हर सुबह मुझसे मिलने आता है।
शरीर की भूख नहीं और प्यास नहीं,
बस एक झलक देखकर जाता है।
मुझे इस दहशत से निकालने का,
हर रोज वो प्रयास करता है।
मेरे पति मुझे फिर से मिल जाए,
वो उनकी ही तलाश करता है।
बता दूंगी मैं उसे इस बार कि,
तेरे साथ ही मेरे सांझ सवेरे हैं।
जिसके साथ फेरे थे उसका पता नहीं,
पर हाँ, बिन फेरे ही हम तेरे हैं।