युवा शक्ति : देश का भविष्य
युवा शक्ति : देश का भविष्य
हे! भारतवर्ष के नव-निर्माता,
हे! कलियुग के भाग्यविधाता,
हे! सकल प्रकृति के अवतारी,
हे! राम-कृष्ण के उत्तराधिकारी,
तुम इस भू के कर्णधार
तुम हो मानव, करो सबसे प्यार,
पर, क्या नहीं विहग मन तेरा।
तेरे तनिक नियंत्रण में,
जो त्याग धैर्य, तुम मंत्रमुग्ध हो,
फैला रहे अँधेरा।
तुम वृद्धों की आशा, जन मानस की अभिलाषा हो।
भारत को फिर से नवभारत,
करने की कामना लिए हुए,
हे वीर्यवान! हे तेजवान!
तुम जन-जन के हित की,
नव-विरचित परिभाषा हो।
पर, हे! यौवन के अधिपति,
तुम पर वारी हैं रतिपति,
पर कंकण जितना तुच्छ ये तेरा,
धैर्य न डिगने पाए।
स्वयं रति यदि समक्ष हो तेरे,
तो भी तेरे कदम न डगमगाये।
बन जितेन्द्रिये, तू जग को जीत।
हे यौवन के अधिकारी!
बन जितेंद्रिय, तू बन जितेन्द्रिये
क्यों भ्रमित हुआ है तेरा पथ,
क्यों भटका है तेरा जीवन रथ।
आकाश दे रहा है ये सीख,
पापी से बड़ा नहीं कोई नीच,
हे भारतवर्ष के नवयौवन!
तुम संभल जाओ, तुम संभल जाओ।
क्योंकि तुम ही भारत के निर्माता हो।
और जयघोष तुम्हारा चहुँदिशा में,
बस यही स्वर गुंजाए।
भारत को विश्वगुरु बनाओ,
फिर से उसको उसकी पहचान दिलाओ।