देह भर नहीं औरत
देह भर नहीं औरत
देह भर नहीं औरत
श्रंगार भर नहीं मन
जीवन-मत्यु से परे
ह्र्दय है औरत
जो सुन सको तो
आत्मा है औरत,
बड़े विजयी बनते हो
तन पे उसके अधिकार जमा
कभी तन के गाँठो से आगे
मन के द्वार देखे है क्या ?
हो सके तो वहाँ पहुँचो
शायद मन चिर-यौवन ही नहीं
चिर प्रतीक्षा में पाओ
सांकल मन के बजा कर देखो
अंदर घोर निराशा पाओ
जिसको होना था जगमग
उस हिस्से में बस आँसू पाओ,
जो एक दीप प्रेम के जला दो
जो एक खिड़की खोल दो
उस मन पे सिर्फ़ तुम्हीं तुम हो
बस मन को मन से जोड़ दो !!