यादें
यादें
दिल की मुंडेर से
यादों का मजमा छंटे तो कोई सोए
बदन की थकान की हैसियत कहाँ
पलकों के बोझिल पर्दे गिराने की
तुम संग बीताये हसीन लम्हों की
नासूर सी स्मृतियाँ चुभती है
दिल की तप्त रेत पर रेंगते वार करती है
नींद के सताए नैंनों से बहती धार है
कह दो तुम्हारी यादों से ना दे सदा
मर-मर के जीता है कोई ना आवाज़ दे
तुम तो भूल चुके हमें
बिना दस्तक के चले गये
खामोशीयों ने मेरी हज़ार आवाज़ लगाई
अफसोस की
तुम्हारे दिल के बंद दरवाज़े तक ना पहुँच पाई
बता दो ना हमें भी सीखा दो ना
भूलने का हुनर कोई तो शायद
सदियों से जगी आँखों को झपकी लगे