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Ratna Kaul Bhardwaj

Drama

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Ratna Kaul Bhardwaj

Drama

एक किताब की तरह हूँ मैं

एक किताब की तरह हूँ मैं

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जीते रहे हम अपनी ही धुन में,

दुनया के कायदे, रस्मे नहीं सीखे,

रिश्ता निभाया तो दिल से,

कभी नुक्सान-फायदे नहीं देखे !


एक किताब की तरह हैं हम,

कितनी भी पुरानी हो जाये,

अल्फ़ाज़ नहीं बदलेंगे !


कभी गाहे बगाहे पन्ने पलट कर देखना,

हम कल जैसे थे आज भी वैसे हैं,

और कल भी वैसे ही मिलेंगे !


फितरत बदलना सीखा गया नहीं हमसे,

आज भी सीरत वैसी ही है, कल जैसी थी,

शायद इसीलिए मुझे अभी भी,

तलाश है मुझ जैसों की ही !


चाहत का चोला पहने,

लफ़्ज़ों से लिपटे वादे,

यूँ तो लम्बी कतार लगी है,

मेरे सुख दुःख बाँटने के लिए !


बेहिसाब तैयार तो हैं सब,

पर सबकी अपनी अपनी शर्ते भी हैं...


कहाँ जाया जाये ऐ दिल,

आखिर इस दुनिया के बगैर,

कोई दूसरी दुनिया तो है नहीं,

तो ऐ दिल, एक कोशिश तो कर !


या दुनिया के रंग में रंग जा,

या कुछ को अपने रंग में रंग दे,

दोनों सूरतों में कश्मकश तो है सही,

पर जीत का रास्ता भी है वहीं कहीं !


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