एक किताब की तरह हूँ मैं
एक किताब की तरह हूँ मैं
जीते रहे हम अपनी ही धुन में,
दुनया के कायदे, रस्मे नहीं सीखे,
रिश्ता निभाया तो दिल से,
कभी नुक्सान-फायदे नहीं देखे !
एक किताब की तरह हैं हम,
कितनी भी पुरानी हो जाये,
अल्फ़ाज़ नहीं बदलेंगे !
कभी गाहे बगाहे पन्ने पलट कर देखना,
हम कल जैसे थे आज भी वैसे हैं,
और कल भी वैसे ही मिलेंगे !
फितरत बदलना सीखा गया नहीं हमसे,
आज भी सीरत वैसी ही है, कल जैसी थी,
शायद इसीलिए मुझे अभी भी,
तलाश है मुझ जैसों की ही !
चाहत का चोला पहने,
लफ़्ज़ों से लिपटे वादे,
यूँ तो लम्बी कतार लगी है,
मेरे सुख दुःख बाँटने के लिए !
बेहिसाब तैयार तो हैं सब,
पर सबकी अपनी अपनी शर्ते भी हैं...
कहाँ जाया जाये ऐ दिल,
आखिर इस दुनिया के बगैर,
कोई दूसरी दुनिया तो है नहीं,
तो ऐ दिल, एक कोशिश तो कर !
या दुनिया के रंग में रंग जा,
या कुछ को अपने रंग में रंग दे,
दोनों सूरतों में कश्मकश तो है सही,
पर जीत का रास्ता भी है वहीं कहीं !