रिश्ता
रिश्ता
इस तरह हर रिश्ता नायाब निकलेगा
यहाँ तो हर बात का हिसाब निकलेगा।
हिंदुस्तान की मिट्टी में नफरत नहीं उगती
गर खून भी सींचोगे तो गुलाब निकलेगा।
बहुत देर से पलकों पे समंदर ठहरा है
अब जो निकलेगा वो सैलाब निकलेगा।
बुझाने दो हवाओं को जलते हुए चिराग
अभी उस दरीचे से माहताब निकलेगा।
जिंदगी है तो मसले हैं ,मसले हैं तो हम
बादलों को चीर कर आफ़ताब निकलेगा।
फैसला रहने दो अभी अपने और गैरों का
कुछ चेहरों से अभी तो नकाब निकलेगा।
जहाँ पानी वहाँ समंदर हो जुरुरी तो नहीं
उतर कर तो देखो जरा तालाब निकलेगा।
कंधे पे हाथ डाल कर घूम रहे थे जिसके
किस्मत बदल गयी, अब जनाब निकलेगा।