जाने कैसे
जाने कैसे
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होली, दिवाली वो
त्योहार आतिशबाज़ी
महीनों की उमंगें,
कपड़ों खिलौनों की ख़रीददारी।
मेहमान का आना,
उत्साह से भरी तैयारी
आज तो रह गई
बनकर यह याद सारी।
शायद जोश ना रहा वो जीने का
सब मशीन हो गए,
नोटों के ढेर में,
कहीं दब से हैं गए।
कभी सोचा था,
ख़रीद लेंगे सपने
जो पास होंगे ये पैसे
आज इनकी खनक में सब
खामोश हो गए।
निकल पड़ती थी जो कड़ी
धूप में भी टोली
आज मिलने के लिए
वक़्त के मोहताज हो गए।
जाने कैसे हम इतने
लाचार हो गए !
जाने कैसे हम इतने
लाचार हो गए !