" एक अन्तहीन उत्सव "
" एक अन्तहीन उत्सव "
" एक अन्तहीन उत्सव "
एक भयावह अन्तर्द्वन्द्व आस्था और अनुभव के मध्य.
कविता ----------
एक भयावह अन्तर्द्वन्द्व होती है
आस्था और अनुभव के मध्य.
अनुभव ----
जब होता जाता है परिपक्व
तब टू--ट--ती है : आस्था
और कविता का जन्म
किसी अशुभ लक्षण - सा
संपूर्ण वातावरण को
असंतोष की ज्वाला में
-- झुलसा देता है.
पहिले फुसफुसाती है
: कविता
फिर .... मिमियाती और
चिल्ला पड़ती है;अचानक
तब; पाती है कि --------
स्तब्ध हैं ; सब
अपने बचाव में रत्
हतप्रभ...... अस्त- व्यस्त
अट्टहास लगाती है
: कविता
और भूल जाती है कि;
जिन आस्थाओं के शव
सम्मुख पड़े हैं
उन्हीं के प्रेत --------------
---------- चारों ओर खड़े हैं .
ग़र्भवती विधवा की तरह
समाज ----- दुहाई देता है
चरित्रहीन-सी सफ़ाई देता है
और फिर;
कविता को आत्मसात् कर
उपेक्षा के अंधकूप में
.............. ढकेल देता है.
गौण हो जाता है ;यहाँ कवि
किसी लांछन की तरह
: कविता
चस्पाँ कर दी जाती है
---- उसके समूचे वज़ूद पर.
उसी कविता की
प्रसव-- वेदना से स्लथ्
उपेक्षित् और युध्दरत्
कवि;
फिर किसी सृजन में
जुट जाता है.
फूटतीं हैं -- नई कोंपलें
वहाँ ----------------- वहाँ
जहाँ ---------------- जहाँ
कवि
टू....ट
जाता
है.
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