"अपनी धरती -अपना अंबर"
"अपनी धरती -अपना अंबर"
आओ बनाए निर्मल, अक्षय, सुंदर ,
यह प्रिय धरती अपनी-अपना अंबर
प्रकाश ध्वनि जलवायु में,
सर्वत्र प्रसारित प्रदूषण विषधर,
करें पर्यावरण विषैला नित डस-डस कर,
बढ़ गये हैं छिद्र ओजोन परत पर,
नानाविध रोग करते जीवन दूभर ,
कट रहे वर्षावन अंधाधुँध,
हर ओर फैल रहे विशाल बंजर,
वर्षा आह्वान में ये सक्षम क्यूँकर,
बंजर से कैसे निर्मित हों जलधर,
कई जीव-पाखी खोगये विलुप्त होकर,
कहीं रूठ जाते वर्षा के ये कहार,
कहीं बरस जाते टूट-टूटकर,
कहीं होता भीषण शीत का कहर,
कहीं ग्रीष्म हो जाती बहुत प्रखर,
अतिवृष्टि, भूकंप, सूखा, जल प्रलय,
नित ढहता आपदाओं का कहर,
कहीं सब कुछ बहा ले जाती ,
सुनामी की प्रचंड, विशाल लहर,
वाहनों, कारखानों का सघन धुआँ,
दम घोंटे प्राणवायु दूषित कर,
विषैले कोहरे में जीव त्रस्त कसमसाकर,
वनस्पतियाँ भी नष्ट हो रहीं मुरझाकर,
माटी कटती जाये खेतों-नदियों के तट पर,
बिना वृक्ष कौन रखे इसे बाँधकर,
समुद्रों में बह रहा तेल-गाद रिसकर,
जल-प्रदूषण से नष्ट होते जलचर,
चक्रवात-तूफान दूभर करते जीवन-बरस,
शहरों में नित बढ़ रहा प्लास्टिक जहर,
अतिक्रमण बाढ़ लाता जलनिकासी अवरूद्ध कर,
क्या पाएँगे हम पर्यावरण खोकर,
ये नेमतें फिर नहीं मिलतीं खोजाने पर,
स्वास्थ्य नहीं लौटता नष्ट हो जाने पर,
धरणी करे याचना करबद्ध होकर,
सहेजें यह थाती सब मिलजुलकर,
ये हमारे पास नव-पीढ़ी की धरोहर,
त्यज झूठी आधुनिकता का आडम्बर,
आओ बचाएँ प्रकृति, प्रदूषण नष्ट कर,
पर्यावरण बचाएँ वृक्षमित्र बनकर,
कटने ना दें कभी वृक्ष कहीं पर,
बिरवे रोपें, पोषित करें जल देकर,
सूखे की आपदा से रहें बचकर,
सब वर्षाजल धरती में सहेजकर,
निर्मल जल के सोते बहाएं निर्झर,
अपशिष्ट न फैले नदी-समुद्र तटों पर,
रखें स्वच्छ निर्मल घर और शहर,
प्रयुक्त पदार्थों का पुनर्चक्रण कर,
उपयोगिता इनकी बनाए रखकर,
अपशिष्टों का उचित प्रबंधन कर,
न करें वन-खनिज-जल संपदा व्यर्थ,
सर्वत्र लहलहाये हरितिमा विहँसकर,
शुद्ध वायु स्वास्थ दे नव-प्राण भरकर,
तटबंध बाँधे रखें वृक्ष प्रहरी बनकर,
जीवन नीर बरसायें सहर्ष जलधर,
कुम्हलाए वैश्विक तपन का असर,
उन्नत हो जलवायु समस्त जग पर,
फले-फूले जीवन यहाँ मन भरकर,
आओ बनाए निर्मल, अक्षय, सुंदर ,
यह प्रिय धरती अपनी-अपना अंबर!