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Lokanath Rath

Tragedy Crime

4  

Lokanath Rath

Tragedy Crime

वो काली रात

वो काली रात

2 mins
554


ये क्या हो गया, आज सुबह सब अचानक थम गया,

हर रास्ते हर गली हर मुहल्ले, सब में सन्नाटा छा गया,

हर घर में सबके मन में डर ही बस गया,

लगा जैसे एक आंधी आके सब कुछ उजाड़ दिया,

पेड़ पौधे अपनी जगा पे, उन्हें कुछ नहीं हुआ,

रास्ते में गलियों में खून की छींटे भी कोई धो नहीं पाया,

घरों से कुछ जलने के बदबू और जलती आग की धुआँ,

कुछ बोल रहा है पर कोई क्यों कुछ समझ नहीं पाया?

अब तो सवालों की घेरे में "वो काली रात " और ये खामोशियां...


ना तूफान ना आंधी पर वो तो नफरत की साजिशें,

सब है इनसान पर बाँट लेता उनको जातियां,

उसमें पागल हो के सेंकते रहते कुछ अपनी स्वार्थ की रोटियां,

कभी धन की ताकत से तो कभी बल की ताकत से रचते अपनी कहानियाँ,

नफरत को गले लगाकर एक दूसरे पे साधते निशानियाँ,

भूल जाते वो पड़ोसी अपनी जात से नहीं, पर उसकी राखी बांधती कलाइयाँ ,

उनकी आँगन में बीती बचपन की कहानियाँ ,

हर सुख दुख के साथी बांटे मिल के दर्द और खुशियाँ,

तब तो वो पराया नहीं थे, ना बाँटती थी जातियाँ,

फिर ये नफरत की बीज कौन और कैसे बोया?

कौन लेगा इसकी जिम्मेदारियां?

वो क़त्ले आम, वो आगजनी अब कहती कुछ अलग कहानियाँ,

कितने भयानक था वो रात, एक दूसरे की खून से उजाड़े बसी हुई दुनिया,

खून की होली खेले बहा के शरीर से खून की पिचकारियाँ,

जिनको ये खेल खेलना था, वो खेल गये उड़ा के सबकी खुशियाँ,

अभी भी डर लगता है, आँखों में नाचता है " वो काली रात " की सच्चाइयाँ..............


ये तो एक तरफ दूसरे तरफ है मजहब की लड़ाइयाँ,

है सबके खून का रंग एक पर, वो दिखता कहाँ?

अलग अलग मजहब ऊपरवाले नहीं, हम ने बनाया,

लक्ष्य एक है पर हम अलग अलग मार्ग चुन लिया,

पहले कितने अच्छा था सब त्यौहार पर बंटती थी मिठाइयाँ,

अब मजहब को मजहब से लड़ाने की हो रही तैयारियां,

इसके आड़ में कुछ स्वार्थी साजे घुसपैठीयां ,

धर्म को हथियार बना के सजाते नफरत की आंधियां,

जहाँ सब एक साथ थे था भाईचारा की डोरियाँ ,

आपस में लड़ाके बहा दिए खून की नदियाँ,

और जो कुछ घर बचा था लगाए आग, उठा गंदगी का धुआँ,

भूले सब पाठ इंसानियत की, चली कई गोलियां,

कितने मरे, कितने घायल, कितने जले पर ना जला ये नफरत

और क्रोध की नजदीकियां,

अब भी सवालों की घेरों में है जाती और धर्म की खामोशियां,

जो देखे कितने क़त्ले कितने जलती घर, कितने दर्दनाक था वो घड़ियाँ,

अब सोच के रूह कांपती है "वो काली रात " की खून से लिखी कहानियां...


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