साथ अधुरी छोड़ देते हो
साथ अधुरी छोड़ देते हो
चाहत को रुसवा कर मेरी
जब रुख में नक़ाब ओढ़ लेते हो
तुम क्या जानो रुह में मेरी
कितने सितम छोड़ देते हो,
हम आलमगीर बन राहों में
चलते है तुम्हारे कदमों तले
तुम धिक्कार कर हमारी मोहब्बत
साथ अधुरी छोड़ देते हो..
चाहत को रुसवा कर मेरी
जब रुख में नक़ाब ओढ़ लेते हो
तुम क्या जानो रुह में मेरी
कितने सितम छोड़ देते हो,
हम आलमगीर बन राहों में
चलते है तुम्हारे कदमों तले
तुम धिक्कार कर हमारी मोहब्बत
साथ अधुरी छोड़ देते हो..