चलन
चलन
खोल दो बांध को
बहने दो गंगा को
ताकि उगने दो
सोना, हिरे, मोती
नि:संशय तुम्हारा अधिकार
तुम्हारी मेहनत का फल
पर क्या इतनी ज़रूरत है तुम्हे
तो ज़रूरत से जो अधिक है
बहने दो उसे हर ओर
अनावश्यक संचय तो व्यर्थ
अंत में माटी ही शेष
तो क्यों दबाते, छुपाते, रोकते तुम !
ना ना दान मत करो
ना ही भीख में डालो
अत: ऐसे काम में लगाओ
जैसे नया उद्योग, व्यवसाय कोई
जिससे काम मिले हाथों को
रोटी मिले पेट को
सुख शांति परिवार को
करने योग्य अनेको क्षेत्र
कृषी उत्पाद, अन्न प्रक्रिया
या उपकरणं आते विदेशी
क्यों न हो स्वदेशी
आज है जो जितना
निश्र्चित ही बढेगा तुम्हारा
साथ मे हो लखपती
हर घर, किसान, मजदूर भी
चलन है तो चलने दो
चलते चलते बढने दो
बहता पानी अमृत
ठहरा वो विष मात्र
खोल दो बांध को
बहने दो गंगा को...।