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Anshika Vivek

Others

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Anshika Vivek

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कुछ सवाल

कुछ सवाल

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हर किताबों में तेरी ही दास्ताँ क्यों है?

हर लकीरों में तेरी ही कमी क्यों है?

यूँ तो लोग पत्थर को भी खुद बना देते हैं 

तो आज एक इंसान पत्थर सा बेजान क्यों है?

मैं ढूँढने निकली हूँ जीने की एक वज़ह 

आज हर वज़ह बेवज़ह क्यों है?

तेरा यूँ साथ होना मुमकिन  ना था 

हाथों से तेरा हाथ छुड़ाना मुश्किल  ही था 

हमने भी महसूस किया हर पल दर्द को 

तेरा हमेशा रूठ जाना फ़िज़ूल ही था 

हमें ही हर बार मनाना क्यों है?

करते हो इश्क़ अगर तुम भी 

तो यूँ अधूरी ज़िन्दगी बिताना क्यों है?

चलती हूँ खुद को संभाले हज़ारों की भीड़ में 

फिर भी हर पल तेरी ही कमी क्यों है?

हँस लेती हूँ अब तो अक़्सर 

फिर भी आँखों में नमी सी क्यों है?

इश्क़ की आबरू कुछ इस क़दर लूटी है तुमने 

अब खुद को ज़माने से बचाना क्यों है?

जानती हूँ कुछ सपने पूरे नहीं होते 

तो हर बार उन्ही सपनों को ओढ़ के सो जाना क्यों है ?

अब तो डर लगता है महफ़िल में जाने से भी 

की चुभ ना जाए मेरी बातें तुझे 

उफ़ जिसने दिल तोड़ा उसकी अब भी इतनी फ़िक्र क्यों है?

कहती नहीं खुद को शायर कभी 

मोहब्बत ही नहीं शायरी से मुझे 

तो दिल के हर पन्नों में एक अधूरी सी शायरी क्यों है ?
ऐ ज़िन्दगी हमें  की पूछ सकूँ 

गर इतनी ही आसान है मौत तो मिलती क्यों नहीं ?

 


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