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Vireshwar Chaturvedi

Others

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Vireshwar Chaturvedi

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चाँद और मैं

चाँद और मैं

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रात अपना हाले वफ़ा चाँद हमसे यूँ कहा,

की जल रहा हूँ यार अपनी चाँदनी के वास्ते

की इन अन्धेरों में फिर कहीं एक मुसाफ़िर जागकर

चल पड़े फिर किसी के आशिकी के रास्ते।।

 

मैं बोला चाँद क्या मूर्ख है रे तू 

या जनता नहीं हम मनुष्यों को तू,

हम वो आशिक़ हैं जो नफरतों के जाल से 

ढूंढते हैं बार-बार तेरे आशिक़ी के रास्ते।।

 

पथभ्रष्ट हैं हम, हैं उस प्रेम से रुख्शत,

जल रहा तू आज भी जिस आशिक़ी के वास्ते,

हम मदांध हो चले कुछ रुपयों के वास्ते,

और लहू से ढक दिया तेरे आशिक़ी के रास्ते।।

 

चाँद बोला बात तो तू ठीक करता है,

बात फिर न मेरी तू क्यों समझता है, 

है खुदगर्ज सभी मगर आज भी कुछ हैं यहाँ

कर रहे नवनिर्माण जो ये आशिक़ी के रास्ते।।

 

 

 

 

 

 


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