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Robin Jain

Abstract

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Robin Jain

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अतिरिक्त

अतिरिक्त

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चल तो रही है दुनिया

क्या मै हाथ बटाऊं

क्यों धरती पे आया

क्या हूं मैं अतिरिक्त

कुछ काम नहीं जो कर लूं

जीवन शब्दों स भर लूं

कुछ पन्ने हैं अतिरिक्त

और लिखता हूं अतिरिक्त

सारी बाते दुनिया जाने

सच झूठ सब वो पहचाने

अब क्या मै मुंह को खोलु

बस कहता हूं अतिरिक्त

बड़े बड़े नेता करते

शब्दों की हेरा फेरी

समझदार तो सब ही हैं

कौन सुनेगा मेरी?

हां में हां मिलाता हूं

सुनकर बातों को तेरी

और अगर जो बचा समय

तो कहता बस अतिरिक्त

गूंज रहा सारा मैदान

जैसे हाहाकार मचा है

चीजें तो धोखा है साहब

बातों का बाज़ार लगा है

काम की बाते दुनिया समझे

सुन रहा अतिरिक्त

स्तब्ध सा मैं लग रहा

खड़ा हुआ अतिरिक्त

आराम का नाम नहीं

बड़े आशियाने में

शांत नहीं है मन

व्यस्तता के बहाने में

सोचने का समय नहीं

तब सोचू मैं अतिरिक्त

जब जीवन वो काट रहे

तब जीता मैं अतिरिक्त

स्याही शायद कुछ ज्यादा है

और पन्ने हैं अतिरिक्त

विचारों की नदियां बहती

तब लिखता यूं ही अतिरिक्त


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