कितने ख़राब हो तुम
कितने ख़राब हो तुम
सुनो !आज न जाने क्यूँ
तुम बहुत याद आ रहे हो
तुम्हारे पास बैठ बस
तुम्हे निहारते रहने को
दिल कर रहा है
बिना बोले न जाने
कितनी बातें करनी हैं
तुम्हारी प्रतीक्षा में -
मेरी निगाहें रह रह के
दरवाज़े पे टहल आती हैं
हवा से भी जब साँकल बज उठती
तो बार बार तुम्हारे ही आने का
भरम न जाने क्यूँ होता है --
सोचता हूँ पता नहीं तुम्हेंं
मेरी याद भी आती है या
नहीं ?
पता है मुझे तुम यहाँ कहीं
नहीं हो
सुनो एक बात कहूँ शायद
तुम नहीं जानते तुमसे ज्यादा
तुम्हारे होने का अहसास प्रिय है
मुझे --हैं न अजीब सी बात
देखो अब फिर कभी न कहना
कि कहा नहीं मैंंने -तुम्हेंं तो पता है
मैंं कहने से रुक नहींं पाता हूँ --
अब कल की ही तो बात है
जब तुम ने कहा था ---
तुम्हेंं प्रेम है मुझसे -
उफ़ पता भी है तुम्हेंं -----
इक जलतरंग सी बज उठी
थी
बस ये सुन कर मन में ---
कान की लवें गर्म हो गई
पलकें अकेले में भी
लाज से झुक गई थींं
फिर यही सवाल तुमने
मुझसे क्यो नहींं पूछा
नहीं बोल पाया मै कुछ भी ---
शब्द गले में अटक से गये
जब की वॉटशअप पर था -
तुम सामने भी तो नहीं थी --
अगर झूठ कहना होता तो
तो कह ही देता -
नहीं है
पर सच कैसे कह देता कि
हाँ मुझे भी प्रेम है तुम से
कितना मुश्क़िल है ये कहना उफ़
और तुम ना कितना हँसे थे मुझ पर
बिना कहे क्या नहीं समझ सके तुम
कितने ख़राब हो तुम -----